Monday, April 6, 2020

|| स्वस्ति मंत्र || शांति पाठ मंत्र || पूजा से पहले बोलना चाहिए ये मंत्र, इससे मिलता है स्वस्थ शरीर और समृद्धि ||

स्वस्ति मंत्र



ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः।
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः।
स्वस्ति नो ब्रिहस्पतिर्दधातु ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

मंत्र का अर्थ - 

महती कीर्ति वाले ऐश्वर्यशाली इन्द्र हमारा कल्याण करें, जिसको संसार का विज्ञान और जिसका सब पदार्थों में स्मरण है, सबके पोषणकर्ता वे पूषा (सूर्य) हमारा कल्याण करें। जिनकी चक्रधारा के समान गति को कोई रोक नहीं सकता, वे गरुड़देव हमारा कल्याण करें। वेदवाणी के स्वामी बृहस्पति हमारा कल्याण करें।स्वस्तिक को हिन्दू धर्म में बहुत ही पवित्र चिन्ह माना गया है | जिस प्रकार से ॐ और श्री शब्द का हिन्दू धर्म में बहुत महत्व है, ठीक उसी प्रकार से स्वस्तिक भी बहुत पवित्र और शुभता का प्रतीक है |  

स्वस्तिक मंत्र का प्रयोग शुभ और शांति के लिए किया जाता है | सभी धार्मिक कार्यों के समय पूजा या अनुष्ठान के समय इस मंत्र द्वारा वातावरण को पवित्र और शांतिमय बनाया जाता है | इस मंत्र का उच्चारण करते समय चारों दिशाओं में जल के छींटे लगाने चाहिए | इस प्रकार जल द्वारा चारों दिशाओं में छींटे लगाकर स्वस्तिक मंत्र का उच्चारण करने की क्रिया स्वस्तिवाचन वाचन कहलाती है |

स्वस्तिवाचन का महत्व - 

स्वस्तिक मंत्र या स्वस्ति मंत्र शुभ और शांति के लिए प्रयुक्त होता है। स्वस्ति = सु + अस्ति = कल्याण हो। ऐसा माना जाता है कि इससे हृदय और मन मिल जाते हैं। मंत्रोच्चार करते हुए दुर्वा या कुशा से जल के छींटे डाले जाते थे व यह माना जाता था कि इससे नेगेटिव एनर्जी खत्म हो जाती है। स्वस्ति मंत्र का पाठ करने की क्रिया 'स्वस्तिवाचन' कहलाती है। 

जगत के कल्याण के लिए, परिवार के कल्याण के लिए स्वयं के कल्याण के लिए, शुभ वचन कहना ही स्वस्तिवाचन है।


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